Motivational Story In Hindi ( प्रेरक कहानी हिंदी में )

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Motivational Story In Hindi  (प्रेरक कहानी हिंदी में)

1. शिकंजी का स्वाद 

Motivational Story In Hindi : एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे. क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे. उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे. लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था.

प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले. लेकिन जब ४-५ दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा, “तुम हर समय उदास रहते हो. क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो. लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते. क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”

“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ. समझ नहीं आता क्या करूं?”

प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे. उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलवाया.

शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे. उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया.

फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो.”

छात्र ने गिलास हाथ में लेकर जैसे ही एक घूंट लिया, अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मुँह अजीब सा बन गया. यह देख प्रोफ़ेसर ने पूछा, “क्या हुआ? शिकंजी पसंद नहीं आई?”

“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है. बस शिकंजी में नमक थोड़ा ज्यादा है.” छात्र बोला.

“अरे, अब तो ये बेकार हो गया. लाओ गिलास मुझे दो. मैं इसे फेंक देता हूँ.” प्रोफ़ेसर ने छात्र से गिलास लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया. लेकिन छात्र ने मना करते हुए कहा, “नहीं सर, बस नमक ही तो ज्यादा है. थोड़ी चीनी और मिलायेंगे, तो स्वाद ठीक हो जायेगा.”

यह बात सुन प्रोफ़ेसर गंभीर हो गए और बोले, “सही कहा तुमने. अब इसे समझ भी जाओ. ये शिकंजी तुम्हारी जिंदगी है. इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव है. जैसे नमक को शिकंजी से बाहर नहीं निकाल सकते, वैसे ही उन बुरे अनुभवों को भी जीवन से अलग नहीं कर सकते. वे बुरे अनुभव भी जीवन का हिस्सा ही हैं. लेकिन जिस तरह हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं. वैसे ही बुरे अनुभवों को भूलने के लिए जीवन में मिठास तो घोलनी पड़ेगी ना. इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब अपने जीवन में मिठास घोलो.”

प्रोफ़ेसर की बात छात्र समझ गया और उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों से परेशान नहीं होगा.

सीख

जीवन में अक्सर हम अतीत की बुरी यादों और अनुभवों को याद कर दु:खी होते रहते हैं. इस तरह हम अपने वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और कहीं न कहीं अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं. जो हो चुका, उसे सुधारा नहीं जा सकता. लेकिन कम से कम उसे भुलाया तो जा सकता है और उन्हें भुलाने के लिए नई मीठी यादें हमें आज बनानी होगी. जीवन में मीठे और ख़ुशनुमा लम्हों को लाइये, तभी तो जीवन में मिठास आयेगी.  

2. हाथी और रस्सी की कहानी 

एक दिन एक व्यक्ति सर्कस देखने गया. वहाँ जब वह हाथियों के बाड़े के पास से गुजरा, तो एक ऐसा दृश्य देखा कि वह हैरान रह गया. उसने देखा कि कुछ विशालकाय हाथियों को मात्र उनके सामने के पैर में रस्सी बांधकर रखा गया है. उसने सोच रखा था कि हाथियों को अवश्य बड़े पिंजरों में बंद कर रखा जाता होगा या फिर जंजीरों से बांधकर. लेकिन वहाँ का दृश्य तो बिल्कुल उलट था.

उसने महावत से पूछा, “भाई! आप लोगों ने इन हाथियों को बस रस्सी के सहारे बांधकर रखा है, वो भी उनके सामने के पैर को. ये तो इस रस्सी को तो बड़े ही आराम से तोड़ सकते हैं. मैं हैरान हूँ कि ये इसे तोड़ क्यों नहीं रहे?”

महावत ने उसे बताया, “ये हाथी जब छोटे थे, तब से ही हम उसे इतनी ही मोटी रस्सी से बांधते आ रहे हैं. उस समय इन्होंने रस्सी तोड़ने की बहुत कोशिश की. लेकिन ये छोटे थे. इसलिए रस्सी को तोड़ पाना इनके सामर्थ्य के बाहर था. वे रस्सी तोड़ नहीं पाए और ये मान लिया कि रस्सी इतनी मजबूत है कि वे उसे नहीं तोड़ सकते. आज भी इनकी वही सोच बरक़रार है. इन्हें आज भी लगता है कि ये रस्सी नहीं तोड़ पाएंगे. इसलिए ये प्रयास भी नहीं करते.”

यह सुनकर वह व्यक्ति अवाक् रह गया.

सीख 

“दोस्तों, उन हाथियों की तरह हम भी अपने जीवन में नकारात्मक सोच रुपी रस्सी से बंध जाते हैं. जीवन में किसी काम में प्राप्त हुई असफ़लता को हम मष्तिष्क में बिठा लेते हैं और यकीन करने लगते हैं कि एक बार किसी काम में असफ़ल होने के बाद उसमें कभी सफ़लता प्राप्त नहीं होगी. इस नकारात्मक सोच के कारण हम कभी प्रयास ही नहीं करते.

आवश्यकता है इस नकारात्मक सोच से बाहर निकलने की; उन कमियों को पहचानकर दूर करने की, जो हमारी असफ़लता का कारण बनी. नकारात्मक सोच हमारी सफ़लता में सबसे बड़ी बाधक है. इसलिए नकारात्मक सोच रुपी जंजीर को तोड़ कर सकारात्मक सोच को अपनायें और जीवन में प्रयास करना कभी न छोड़ें, क्योंकि प्रयास करना सफ़लता की दिशा में कदम बढ़ाना है.”

 3. शार्क और चारा मछलियाँ 

अपने शोध के दौरान एक समुद्री जीवविज्ञानी ने पानी से भरे एक बड़े टैंक में शार्क को डाला. कुछ देर बाद उसने उसमें कुछ चारा मछलियाँ डाल दी.

चारा मछलियों को देखते ही शार्क तुरंत तैरकर उनकी ओर गई और उन पर हमला कर उन्हें खा लिया. समुद्री जीवविज्ञानी ने कुछ और चारा मछलियाँ टैंक में डाली और वे भी तुरंत शार्क का आहार बन गई.

अब समुद्री जीवविज्ञानी ने एक कांच का मजबूत पारदर्शी टुकड़ा उस टैंक के बीचों-बीच डाल दिया. अब टैंक दो भागों में बंट चुका था. एक भाग में शार्क थी. दूसरे भाग में उसने कुछ चारा मछली डाल दी.

विभाजक पारदर्शी कांच से शार्क चारा मछलियाँ को देख सकती थी. चारा मछलियों के देख शार्क फिर से उन पर हमला करने के लिए उस ओर तैरी. लेकिन कांच के विभाजक टुकड़े से टकरा कर रह गई. उसने फिर से कोशिश की. लेकिन कांच के टुकड़े के कारण वह चारा मछलियों तक नहीं पहुँच सकी.

शार्क ने दर्जनों बार पूरी आक्रामकता के साथ चारा मछलियों पर हमला करने की कोशिश की. लेकिन बीच में कांच का टुकड़ा आ जाने के कारण वह असफल रही. कई दिनों तक शार्क उन कांच के विभाजक के पार जाने का प्रयास करती रही. लेकिन सफल न हो सकी. अंततः थक-हारकर उसने एक दिन हमला करना छोड़ दिया और टैंक के अपने भाग में रहने लगी.

कुछ दिनों बाद समुद्री जीवविज्ञानी ने टैंक से वह कांच का विभाजक हटा दिया. लेकिन शार्क ने कभी उन चारा मछलियों पर हमला नहीं किया क्योंकि एक काल्पनिक विभाजक उसने दिमाग में बस चुका था और उसने सोच लिया था कि वह उसे पार नहीं कर सकती.

सीख

जीवन में असफ़लता का सामना करते-करते कई बार हम अंदर से टूट जाते हैं और हार मान लेते हैं. हम सोच लेते हैं कि अब चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, सफ़लता हासिल करना नामुमकिन है और उसके बाद हम कभी कोशिश ही नहीं करते. जबकि सफ़लता प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास आवश्यक है. परिस्तियाँ परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं. इसलिये अतीत की असफ़लता को दिमाग पर हावी न होने दें और पूरी लगन से फिर मेहनत करें. सफलता आपके कदम चूमेगी.

4. चार मोमबत्तियाँ 

Motivational Story In Hindi : रात का समय था. चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया हुआ था. केवल एक ही कमरा प्रकाशित था. वहाँ चार मोमबत्तियाँ जल रही थी.

चारों मोमबत्तियाँ एकांत देख आपस में बातें करने लगी. पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ. जब मैं इस दुनिया को देखती हूँ, तो बहुत दु:खी होती हूँ. चारों ओर आपा-धापी, लूट-खसोट और हिंसा का बोलबाला है. ऐसे में यहाँ रहना बहुत मुश्किल है. मैं अब यहाँ और नहीं रह सकती.” इतना कहकर मोमबत्ती बुझ गई.

दूसरी मोमबत्ती भी अपने मन की बात कहने लगी, “मैं विश्वास हूँ. मुझे लगता है कि झूठ, धोखा, फरेब, बेईमानी मेरा वजूद ख़त्म करते जा रहे हैं. ये जगह अब मेरे लायक नहीं रही. मैं भी जा रही हूँ.” इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई.

तीसरी मोमबत्ती भी दु:खी थी. वह बोली, “मैं प्रेम हूँ. मैं हर किसी के लिए हर पल जल सकती हूँ. लेकिन अब किसी के पास मेरे लिए वक़्त नहीं बचा. स्वार्थ और नफरत का भाव मेरा स्थान लेता जा रहा है. लोगों के मन में अपनों के प्रति भी प्रेम-भावना नहीं बची. अब ये सहना मेरे बस की बात नहीं. मेरे लिए जाना ही ठीक होगा.” कहकर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई.

तीसरी बत्ती बुझी ही थी कि कमरे में एक बालक ने प्रवेश किया. मोमबत्तियों को बुझा हुआ देख उसे बहुत दुःख हुआ. उसकी आँखों से आँसू बहने लगे. दु:खी मन से वो बोला, “इस तरह बीच में ही मेरे जीवन में अंधेरा कर कैसे जा सकती हो तुम. तुम्हें तो अंत तक पूरा जलना था. लेकिन तुमने मेरा साथ छोड़ दिया. अब मैं क्या करूंगा?”

बालक की बात सुन चौथी मोमबत्ती बोली, “घबराओ नहीं बालक. मैं आशा हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ. जब तक मैं जल रही हूँ, तुम मेरी लौ से दूसरी मोमबत्तियों को जला सकते हो.”

चौथी मोमबत्ती की बात सुनकर बालक का ढाढस बंध गया. उसने आशा के साथ शांति, विश्वास और प्रेम को पुनः प्रकाशित कर लिया.

सीख

जीवन में समय एक सा नहीं रहता. कभी उजाला रहता है, तो कभी अँधेरा. जब जीवन में अंधकार आये, मन अशांत हो जाये, विश्वास डगमगाने लगे और दुनिया पराई लगने लगे. तब आशा का दीपक जला लेना. जब तक आशा का दीपक जलता रहेगा, जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता. आशा के बल पर जीवन में सबकुछ पाया जा सकता है. इसलिए आशा का साथ कभी ना छोड़े.

5. समस्या का दूसरा पहलू

Motivational Story In Hindi On Problem Solving : पिता ऑफिस का काम करने में व्यस्त था. उसका १० साल का बच्चा बार-बार कोई सा कोई सवाल लेकर उसके पास आता और पूछ-पूछकर तंग करता. बच्चे  की इस हरकत से पिता परेशान हो रहा था.

इसका हल निकालते हुए उसने सोचा क्यों ना बच्चे को कोई ऐसा काम दे दूं, जिसमें वह कुछ घंटे उलझा रहे. उतने समय में मैं अपना काम निपटा लूंगा.

अबकी बार जब बच्चा आया, तो पिता ने एक पुरानी किताब उठा ली. उसके एक पेज पर वर्ल्ड मैप (World Map) बना हुआ था. उसने किताब का वह पेज फाड़ किया और फिर उस पेज को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया. वे टुकड़े बच्चे को देते हुए बोला, “यह पेज पर वर्ल्ड मैप बना हुआ था. मैंने इसे कुछ टुकड़ों में बांट दिया है. तुम्हें इन टुकड़ों को जोड़कर फिर से वर्ल्ड मैप तैयार करना है. जाओ इसे जाकर जोड़ो. जब वर्ल्ड मैप बन जाये, तब आकर मुझे दिखाना.”

बच्चा वो टुकड़े लेकर चला गया. इधर पिता ने चैन की सांस ली कि अब कई घंटों तक बच्चा उसके पास नहीं आयेगा और वह शांति से अपना काम कर पायेगा.

लेकिन ५ मिनट के भीतर ही बच्चा आ गया और बोला, “पापा, देखिये मैंने वर्ल्ड मैप बना लिया.”

पिता ने चेक किया, तो पाया कि मैप बिल्कुल सही जुड़ा था. उसने हैरत में पूछा, “ये तुमने इतनी जल्दी कैसे कर लिया?”

“ये तो बहुत ही आसान था पापा. आपने जिस पेज के टुकड़े मुझे दिए थे, उसके एक साइड पर वर्ल्ड मैप बना था, एक साइड पर कार्टून. मैंने कार्टून को जोड़ दिया, वर्ल्ड मैप अपने आप तैयार हो गया.”

पिता बस बच्चे को देखता रह गया.

सीख – अक्सर हम कोई बड़ी समस्या सामने आने पर उसे देख ये सोच लेते हैं कि समस्या बहुत बड़ी है और वो हल हो ही नहीं सकती. हम उसका एक पहलू देखते हैं और अपना दृष्टिकोण बना लेते हैं. जबकि उसका दूसरा पहलू भी हो सकता है, जहाँ से उसका हल बहुत आसानी से निकल आये. इसलिए जीवन में जब भी समस्या आये, तो हर पहलू देखकर उसका आंकलन करना चाहिए. कोई न कोई आसान हल ज़रूर मिल जायेगा.  

6. हमेशा सीखते रहो

Motivational Story In Hindi : एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया. शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये. फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया. दोनों का व्यवसाय चल पड़ा. दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली.

व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरे काम चल पड़ा है. अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा. लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ.

अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा. वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया. सबने पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था. वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है. उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया.

अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा. दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा. तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया. बहुत घाटा झेलना पड़ा. तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो. त्तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?”

यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से   भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी. जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ. इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता. बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है.”

दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ. सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था. वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा. उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया.

सीख

दोस्तों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये. यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं. यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे. क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है. जिसें दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है. इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता.

7. उबलता पानी और मेंढक 

एक बार वैज्ञानिकों ने शारीरिक बदलाव की क्षमता की जांच के लिए एक शोध किया. शोध में एक मेंढक लिया गया और उसे एक कांच के जार में डाल दिया गया. फ़िर जार में पानी भरकर उसे गर्म किया जाने लगा. जार में ढक्कन नहीं लगाया गया था, ताकि जब पानी का गर्म ताप मेंढक की सहनशक्ति से बाहर हो जाए, तो वह कूदकर बाहर आ सके.

प्रारंभ में मेंढक शांति से पानी में बैठा रहा. जैसे पानी का तापमान बढ़ना प्रारंभ हुआ, मेंढक में कुछ हलचल सी हुई. उसे समझ में तो आ गया कि वो जिस पानी में बैठा है, वो हल्का गर्म सा लग रहा है. लेकिन कूदकर बाहर निकलने के स्थान पर वो अपनी शरीर की ऊर्जा बढ़े हुए तापमान से तालमेल बैठाने में लगाने लगा.

पानी थोड़ा और गर्म हुआ, मेंढक को पहले से अधिक बेचैनी महसूस हुई. लेकिन, वह बेचैनी उसकी सहनशक्ति की सीमा के भीतर ही थी. इसलिए वह पानी से बाहर नहीं कूदा, बल्कि अपने शरीर की ऊर्जा उस गर्म पानी में तालमेल बैठाने में लगाने लगा.

धीरे-धीरे पानी और ज्यादा गर्म होता गया और मेंढक अपने शरीर की अधिक ऊर्जा पानी के बढ़े हुए तापमान से तालमेल बैठाने में लगता रहा.

जब पानी उबलने लगा, तो मेंढक की जान पर बन आई. अब उसकी सहनशक्ति जवाब दे चुकी थे. उसने जार से बाहर कूदने के लिए अपने शरीर की शक्ति बटोरी, लेकिन वह पहले ही शरीर की समस्त ऊर्जा धीरे-धीरे उबलते पानी से तालमेल बैठाने में लगा चुका था. अब उसके शरीर में जार से बाहर कूदने की ऊर्जा शेष नहीं थी. वह जार से बाहर कूदने में नाकाम रहा और उसी जार में मर गया.

यदि समय रहते उसने अपनी शरीर की ऊर्जा का प्रयोग जार से बाहर कूदने में किया होता, तो वह जीवित होता.

सीख 

दोस्तों, हमारे जीवन में भी ऐसा होता है. अक्सर परिस्थितियाँ विपरीत होने पर हम उसे सुधारने या उससे बाहर निकलने का प्रयास ना कर उससे तालमेल बैठाने में लग जाते है. हमारी आँख तब खुलती है, जब परिस्थितियाँ बेकाबू हो जाती है और हम पछताते रह जाते हैं कि समय रहते हमने कोई प्रयास क्यों नहीं किया. इसलिए प्रारंभिक अनुभव होते ही परिस्थितियाँ सुधारने की कार्यवाही प्रारंभ कर दे और जब समझ आ जाये कि अब इन्हें संभालना मुश्किल है, तो उससे बाहर निकल जायें. परिस्थितियों से लड़ना आवश्यक है, लेकिन समय रहते उससे बाहर निकल जाना बुद्धिमानी है.

8. हीरे की खान

Motivational Story In Hindi On Opportunity : अफ्रीका महाद्वीप में हीरों की कई खानों की खोज हो चुकी थी, जहाँ से बहुतायत में हीरे प्राप्त हुए थे. वहाँ के एक गाँव में रहने वाला किसान अक्सर उन लोगों की कहानियाँ सुना करता था, जिन्होंने हीरों की खान खोजकर अच्छे पैसे कमाये और अमीर बन गए. वह भी हीरे की खान खोजकर अमीर बनना चाहता था.

एक दिन अमीर बनने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपना खेत बेच दिया और हीरों की खान की खोज में निकल पड़ा. अफ्रीका के लगभग सभी स्थान छान मारने के बाद भी उसे हीरों का कुछ पता नहीं चला. समय गुजरने के साथ उसका मनोबल गिरने लगा. उसे अपना अमीर बनने का सपना टूटता दिखाई देने लगा. वह इतना हताश हो गया कि उसके जीने की तमन्ना ही समाप्त हो गई और एक दिन उसने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी.

इस दौरान दूसरा किसान, जिसने पहले किसान से उसका खेत खरीदा था, एक दिन उसी खेत के मध्य बहती छोटी नदी पर गया. सहसा उसे नदी के पानी में से इंद्रधनुषी प्रकाश फूटता दिखाई पड़ा. उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि नदी के किनारे एक पत्थर पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह चमक रहा था. किसान ने झुककर वह पत्थर उठा लिया और घर ले आया.

वह एक ख़ूबसूरत पत्थर था. उसने सोचा कि यह सजावट के काम आएगा और उसने उसे घर पर ही सजा लिया. कई दिनों तक वह पत्थर उसके घर पर सजा रहा. एक दिन उसके घर उसका एक मित्र आया. उसने जब वह पत्थर देखा, तो हैरान रह गया.

उसने किसान से पूछा, “मित्र! तुम इस पत्थर ही कीमत की जानते हो?”

किसान ने जवाब दिया, “नहीं.”

“मेरे ख्याल से ये हीरा है. शायद अब तक खोजे गए हीरों में सबसे बड़ा हीरा.” मित्र बोला.

किसान के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था. उसने अपने मित्र को बताया कि उसे यह पत्थर अपने खेत की नदी के किनारे मिला है. वहाँ ऐसे और भी पत्थर हो सकते हैं.”

दोनों खेत पहुँचे और वहाँ से कुछ पत्थर नमूने के तौर पर चुन लिए. फिर उन्हें जाँच के लिए भेज दिया. जब जाँच रिपोर्ट आयी, तो किसान के मित्र की बात सच निकली. वे पत्थर हीरे ही थे. उस खेत में हीरों का भंडार था. वह उस समय तक खोजी गई सबसे कीमती हीरे की खदान थी. उसका खदान का नाम ‘किम्बर्ले डायमंड माइन्स’ है. दूसरा किसान उस खदान की वजह से मालामाल हो गया.

पहला किसान अफ्रीका में दर-दर भटका और अंत में जान दे दी. जबकि हीरे की खान उसके अपने खेत में उसके क़दमों तले थी.

सीख

मित्रों, इस कहानी में हीरे पहले किसान के कदमों तले ही थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाया और उनकी खोज में भटकता रहा. ठीक वैसे ही हम भी सफलता प्राप्ति के लिए अच्छे अवसरों की तलाश में भटकते रहते हैं. हम उन अवसरों को पहचान नहीं पाते या पहचानकर भी महत्व नहीं देते, जो हमारे आस-पास ही छुपे रहते हैं. जीवन में सफ़ल होना है, तो आवश्यकता है बुद्धिमानी और परख से उन अवसरों को पहचानने की और धैर्य से अनवरत कार्य करने की. सफ़लता निश्चित है.   

9. जो चाहोगे सो पाओगे

Motivational Story In Hindi : एक साधु घाट किनारे अपना डेरा डाले हुए था. वहाँ वह धुनी रमा कर दिन भर बैठा रहता और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाता, “जो चाहोगे सो पाओगे!”

उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उसे पागल समझते थे. वे उसकी बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते, वे उस पर हँसते थे.

एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था. साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी – “जो चाहोगे सो पाओगे!” “जो चाहोगे सो पाओगे!”.

ये वाक्य सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से जो चाहोगे सो पाओगे  चिल्ला रहे हो. क्या आप सच में मुझे वो दे सकते हो, जो मैं पाना चाहता हूँ?”

साधु बोला, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?”

“बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ. क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?” युवक बोला.

“बिल्कुल बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना.” साधु बोला. साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चमक उठी.

फिर साधु ने उसे अपनी दोनों हथेलियाँ आगे बढ़ाने को कहा. युवक ने अपनी हथेलियाँ साधु के सामने कर दी. साधु ने पहले उसकी एक हथेली पर अपना हाथ रखा और बोला, “बेटा, ये इस दुनिया का सबसे अनमोल हीरा है. इसे ‘समय’ कहते हैं. इसे जोर से अपनी मुठ्ठी में जकड़ लो. इसके द्वारा तुम जितने चाहे उतने हीरे बना सकते हो. इसे कभी अपने हाथ से निकलने मत देना.”

फिर साधु ने अपना दूसरा हाथ युवक की दूसरी हथेली पर रखकर कहा, “बेटा, ये दुनिया का सबसे कीमती मोती है. इसे ‘धैर्य’ कहते हैं. जब किसी कार्य में समय लगाने के बाद भी वांछित परिणाम प्राप्त ना हो, तो इस धैर्य नामक मोती को धारण कर लेना. यदि यह मोती तुम्हारे पास है, तो तुम दुनिया में जो चाहो, वो हासिल कर सकते हो.”

युवक ने ध्यान से साधु की बात सुनी और उन्हें धन्यवाद कर वहाँ से चल पड़ा. उसे सफ़लता प्राप्ति के दो गुरुमंत्र मिल गए थे. उसने निश्चय किया कि वह कभी अपना समय व्यर्थ नहीं गंवायेगा और सदा धैर्य से काम लेगा.

कुछ समय बाद उसने हीरे के एक बड़े व्यापारी के यहाँ काम करना प्रारंभ किया. कुछ वर्षों तक वह दिल लगाकर व्यवसाय का हर गुर सीखता रहा और एक दिन अपनी मेहनत और लगन से अपना सपना साकार करते हुए हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बना.

सीख

लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदा ‘समय’ और ‘धैर्य’ नाम के हीरे-मोती अपने साथ रखें. अपना समय कभी व्यर्थ ना जाने दें और कठिन समय  में धैर्य का दामन ना छोड़ें. सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी. 

10. मछुआरों की समस्या

Motivational Story In Hindi : मछलियाँ सालों से जापानियों की प्रिय खाद्य पदार्थ रही हैं. वे इसे अपने भोजन का एक अभिन्न अंग मानते हैं. ताज़ी मछलियों का स्वाद उन्हें बहुत पसंद हैं. लेकिन तटों पर मछलियों के अभाव के कारण मछुआरों को समुद्र के बीच जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं.

शुरुवाती दिनों में जब मछुआरे मछलियाँ पकड़ने बीच समुद्र में जाते, तो वापस आते-आते बहुत देर हो जाती और मछलियाँ बासी हो जाती. यह उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई क्योंकि लोग बासी मछलियाँ ख़रीदने से कतराते थे.

इस समस्या का निराकरण मछुआरों ने अपनी बोट में फ्रीज़र लगवाकर किया. वे मछलियाँ पकड़ने के बाद उन्हें फ्रीज़र में डाल देते थे. इससे मछलियाँ लंबे समय तक ताज़ी बनी रहती थी. लेकिन लोगों ने फ्रीज़र में रखी मछलियों का स्वाद पहचान लिया. वे ताज़ी मछलियों की तरह स्वादिष्ट नहीं लगती थी. लोग उन्हें ख़ास पसंद नहीं करते थे और ख़रीदना नहीं चाहते थे.

मछुआरों के मध्य इस समस्या का हल निकालने के किये फिर से सोच-विचार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई. आख़िरकार इसका हल भी मिल गया. सभी मछुआरों ने अपनी बोट में फिश टैंक बनवा लिया. मछलियाँ पकड़ने के बाद वे उन्हें पानी से भरे फिश टैंक में डाल देते. इस तरह वे ताज़ी मछलियाँ बाज़ार तक लाने लगे. लेकिन इसमें भी एक समस्या आ खड़ी हुई.

फिश टैंक में मछलियाँ कुछ देर तक इधर-उधर विचरण करती. लेकिन ज्यादा जगह न होने के कारण कुछ देर बाद स्थिर हो जाती. मछुआरे जब किनारे तक पहुँचते, तो वे सांस तो ले रही होती थी. लेकिन समुद्री जल में स्वतंत्र विचरण करने वाली मछलियों वाला स्वाद उनमें नहीं होता था. लोग चखकर ये अंतर कर लेते थे.

ये मछुआरों के लिए फिर से परेशानी का सबब बन गई. इतनी कोशिश करने के बाद भी समस्या का कोई स्थाई हल नहीं निकल पा रहा था.

फिर से उनकी बैठक हुई और सोच-विचार प्रारंभ हुआ. सोच-विचार कर जो हल निकाला गया, उसके अनुसार मछुआरों ने मछलियाँ पकड़कर फिश टैंक में डालना जारी रखा. लेकिन साथ में उन्होंने एक छोटी शार्क मछली भी टैंक में डालनी शुरू कर दी.

शार्क मछलियाँ कुछ मछलियों को मारकर खा जाती थी. इस तरह कुछ हानि मछुआरों को ज़रूर होती थी. लेकिन जो मछलियाँ किनारे तक पहुँचती थी, उनमें स्फूर्ती और ताजगी बनी रहती थी. ऐसा शार्क मछली के कारण होता था. क्योंकि शार्क मछली के डर से मछलियाँ पूरे समय अपनी जान बचाने सावधान और चौकन्नी रहती थी. इस तरह टैंक में रहने के बाबजूद वे ताज़ी रहती थीं.

इस तरकीब से जापानी मछुआरों ने अपनी समस्या का समाधान कर लिया.

मित्रों, जब तक हमारी जिंदगी में शार्क रूपी चुनौतियाँ नहीं आती, हमारा जीवन टैंक में पड़ी मछलियों की तरह ही होता है – बेजान और नीरस. हम सांस तो ले रही होते हैं, लेकिन हममें जिंदादिली नहीं होती. हम बस एक ही रूटीन से बंध कर रह जाते हैं. धीरे-धीरे हम इसके इतने आदी हो जाते हैं कि चुनौतियाँ आने पर बड़ी जल्दी उसके सामने दम तोड़ देते हैं या हार मान जाते हैं. धीरे-धीरे चुनौतियों और मेहनत के डर से हम बड़े सपने देखना छोड़ देते हैं और हालातों से समझौता कर साधारण जीवन व्यतीत करने लगते हैं. यदि जीवन में बड़ी और असाधारण सफ़लता हासिल करनी है, तो बड़े सपने देखने होंगें. सपनों को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना होगा. तब ही बड़ी और असाधारण सफ़लता की प्राप्ति होगी.


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